रोज़ाना रोनेकी जैसी आदत सी हो गयी है हमें,
ना ना हमें नहीं यह नादान आँखें नही मानती,
मन को तो हम समझाते है पर आँखें उतनीही चंचल|
हररोज़ रात तकिया गिला कर देती है,
आंसूओंकी दो बूँदे आँखों से फिसलकर गालों पर से गुजरते हुए,
कानो के निचे से गर्दन के पिछले हिस्से से होकर तकिये पर जा गिरती है, बची हुई आंसूओंकी लकीरे ऐसेही सूख जाती है|
लगता है हमारी आंसूओंको तकिये से प्यार हो गया है,
आंसू प्यार करके उसे छुपाना भी अच्छी तरह से जनते है,
उसे डर है कही तकिया गिला रहने की वजह से मुझसे कोई सवाल न करे,
फिर दिन होता है, फिर रात आती है,
फिर आँखें बूँदें बरसाती है,फिर तकिया गिला कर देती है|
------यशश्री (मनस्विनी)
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