आत्मसमर्पण




कभी रोशनी तुम्हारे घर आती होगी,

मेरे घर आती है मगर अँधेरे से डरती है,
कभी खुशियों की बौछार से तुम्हारा घर खिल उठता होगा,
मेरे घर तो ख़ुशी कंबख़्त दुख के साथ आती है। 

खुशनसीब होते है वह लम्हे जब तुम साथ होते हो,
क्या घर,क्या रोशनी,क्या ख़ुशी,
सब कुछ तुम खुदमें समाए बैठे हो,
तुम्हे छूती हुँ तो लगता है ऐसे,
के जैसे तुम्हे कई बार गले लगा चुकी हुँ,
ज़िस्म तो सिर्फ कहने के लिए है,
आत्मसमर्पण तो कब का कर चुकी हुँ। 

----यशश्री (मनस्विनी)

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