मेरे बटुए में मानो मेरी सारी ज़िन्दगी छिपी है,
कुछ कही, कुछ अनकही बातों की लिपि है,
मेरे बटुए में चार हिस्से है,
पहले हिस्से में भगवान की तस्वीर है,
दूजे हिस्से में रेल्वे का पास,
तीजे में नकद है,
आखरी और चौथे हिस्से में कई सिक्के है,
जिनकी खनखनाहट हमेशा मुझे टोकती रहती है,
वो सिक्के मेरे जेब में कई दिनों से ज्यो की त्यों पड़े है,
पता नहीं क्यों इन्हें खर्च करने का मन नहीं करता,
ऐसा लगता है इन्हें बस गिनती चलू और वापिस बटुए में रख दू,
मेरा बटुआ बिना कहे सब कुछ कहता है,
खुदमें यह मेरी सारी पर्चियां समां लेता है,
काश..........ऐसा मेरा दिल भी होता,
जो हर एक को खुद में समां लेता,
सामने वाला कैसा भी हो,
बस बिना पहचाने ही अपना लेता।
-----यशश्री.
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