सोते सोते मेरी आँख लग गयी
आँख लगते लगते फिर नींद खुल गयी|
वैसे तो हम नींद टालने के सौ बहाने ढूँढ़ते रहते है,
डर लगता है हमें ख्वाबों से और यही चुभते रहते है,
इसलिए हम आँख भी नहीं लगने देते |
पर यह कमबख्त मेरी सुनती कहा है?
चार चाय के प्याले पीनेपर भी खुली रहती ही नही,
इससे मुझे एक बात का तो एहसास हुआ,
जब मेरी नींद ही मेरे बस में नहीं है तो साँसे कैसी होगी?
जनम से लेकर मौत की गोद में सोने तक आँखें ही तो सब नज़ारें दिखाती है,
मन की और दिमाग की आँखें दुनिया में छिपी सारी विविधताओं को,
सही ढंग से सराहती है,यह एहसास दिलाती है की किस किस्म के लोग होते है,
वे बुरा व्यवहार क्यों करते है?अगर अच्छा करते है तो क्यों?
हर एक चीज़ के पीछे एक वजह होती है,
बस यही वजह जानने के लिए एक अनूठी आँखों की जरूरत होती है,
क्यूंकि वह सादी आँखों से नहीं दीखता,
और ऐसे नज़रिये की प्राप्ति इतनी भी सरल नहीं है,
भक्ति की शक्ति को ऐसेही नहीं सराहते लोग,
मंदिरों में जाकर ऐसेही नहीं चढाते भोग|
में तो कहती हु की मंदिरों में जाने की जरूरत ही क्या है?
जो मन में मैल भरा पड़ा है,वह साफ़ करना है,
भगवन के सामने मत्था टेकने से अगर सब कुछ टल जाता,
तो सारे यही करते,बिना सोचे समझे बस मत्था ही टेकते रहते|
हे भगवान..!आखिर में यह कविता ख़त्म तो करने की सूचना दे मुझे|
कलम को कागज पर अभी चलने से रोक ले मुझे..!
और न लिख सकुंगी में,
इंन्सानी दुनिया की बुराई न कर सकुंगी में,
आखिर एक इंन्सान जो हु में,
बस ढूँढती रहती हु इंन्सानों में एक अच्छा इंसान,
जो सारे भगवानो को प्यारा हो,
और जो मेरे प्राणोंसे भी बढ़कर मुझे उससे प्यार करना सिखाता हो|
-------यशश्री
0 Comments: